झालावाड़ स्कूल हादसा: मासूमों की मौत और सिस्टम की संवेदनहीनता की सच्ची कहानी

झालावाड़ स्कूल हादसा: मासूमों की मौत, मलबे में सपने, और तंत्र की लापरवाही की काली दास्तां

Updated: 26 जुलाई, 2025 | स्थान: झालावाड़, राजस्थान

पिपलोदी गांव के सरकारी स्कूल की छत कई दिनों से जर्जर थी। 

बच्चों ने कई बार शिकायत की, लेकिन शिक्षकों ने उन्हें डांटकर चुप करा दिया। 60 से अधिक बच्चे कक्षा में थे, तभी छत भरभराकर गिर गई।

  • 7-8 बच्चों की मौके पर मौत हो गई।
  • 9 से अधिक बच्चे घायल हैं।
  • छत को टायरों से सहारा देकर टिकाया गया था।

टूटे सपने, बिखरे आंगन

हादसे ने कई परिवारों को तबाह कर दिया। एक मां ने कहा: "मेरे दो ही बच्चे थे... अब आंगन सूना है।" एक बहन रोती रही: "अब किसे राखी बांधूंगी?" एक अर्थी पर भाई-बहन का अंतिम संस्कार हुआ। पूरा गांव मातम में डूब गया।

गुस्से में उबला झालावाड़

हादसे के बाद गांव और शहर में विरोध प्रदर्शन हुए। स्कूल के बाहर लोगों ने आगजनी की, प्रशासन के खिलाफ नारेबाज़ी हुई। 

हर आंख नम थी, और हर दिल में सवाल — जिम्मेदार कौन? 

शिक्षा विभाग को जर्जर बिल्डिंग की जानकारी पहले से थी। 

बच्चों की चेतावनी के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। 

यह केवल एक हादसा नहीं, बल्कि सरकारी सिस्टम की संवेदनहीनता की मिसाल है।

नेताओं की प्रतिक्रिया और राजनीति

  • CM भजनलाल शर्मा ने MLA LAD फंड में बदलाव की घोषणा की।
  • पूर्व CM वसुंधरा राजे ने 20 लाख की सहायता और सरकारी नौकरी दी।
  • राहुल गांधी और सचिन पायलट ने सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाया।
  • PM मोदी ने हादसे पर गहरा शोक व्यक्त किया।


झालावाड़ हादसा एक चेतावनी है कि हमें अब सिर्फ खबरें नहीं, परिवर्तन चाहिए। 

यह समय आँसू पोंछने का नहीं, प्रण लेने का है कि हम दोबारा ऐसा नहीं होने देंगे

“मासूमों की मौत को न भूलिए, उन्हें इंसाफ दिलाना हमारा फर्ज़ है।”

  • सभी स्कूल भवनों का सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य किया जाए।
  • MLA/MP फंड को स्कूल मरम्मत में प्राथमिकता दी जाए।
  • शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई की प्रक्रिया बने।
  • राजनीति नहीं, जवाबदेही जरूरी है।

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