Basant Panchami - बसंत पंचमी उत्सव और उसके नियमों का महत्व

Basant Panchami - बसंत पंचमी उत्सव और उसके नियमों का महत्व



देवी सरस्वती से जुड़े सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है वसंत पंचमी का त्योहार।

भारत में बसंत पंचमी या वसंत पंचमी, सरस्वती पूजा और सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से, शुभ फल तो मिलते ही हैं, साथ ही उस व्यक्ति को मां सरस्वती की असीम कृपा भी प्राप्त होती है

Basant Panchami 2021 -  बसंत पंचमी  उत्सव और उसके नियमों  का महत्व

मंदिरों, घरों और शैक्षणिक संस्थानों में बसंत पंचमी का त्योहार बहुत उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। 

इस दिन स्कूलों और संस्थानों में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। 

देवी सरस्वती की पूजा के पंडालों का भी आयोजन किया जाता हैं।

सरस्वती पूजा पर लोग दूध से बनी मिठाई और खिचड़ी बनाते हैं। मिठाई, फल और खिचड़ी पहले देवी को अर्पित की जाती है। 

और फिर दोस्तों और परिवार के सदस्यों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है।

बसंत पंचमी का महत्व

बसंत पंचमी को बहुत ही शुभ माना जाता है इसे "अबूझ मुहूर्त" भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन किसी भी कार्य को करने के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती।

इस दिन विवाह, निर्माण कार्य, अन्नप्राशन और कोई भी अन्य शुभ कार्य करना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। 

यूं तो भारत में छह ऋतुएं होती हैं लेकिन बसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है. इस दौरान मौसम खुशनुमा हो जाता है और पेड़ों में नए फल और फूल आने लगते हैं। 

इस दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। किसानों के लिए इस त्योहार का विशेष महत्व है। बसंत पंचमी पर सरसों के खेत लहलहा उठते हैं. चना, जौ, ज्‍वार और गेहूं की बालियां खिलने लगती हैं। 

इसी दिन के बाद से सर्दी ऋतु का समाप्त होना शुरू हो जाता है. वहीं, ग्रीष्म यानी गर्मी के मौसम का आगमन हो जाता है। 

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ऐसे में दिन बड़े और रात छोटी होने लगती हैं। ऋतुओं के इस संधिकाल को ज्ञान और विज्ञान दोनों को ही प्राप्त करने के लिए उत्तम समय माना जाता  है।

बसंत पंचमी, बृज भूमि में होली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है। 

इस दिन, मथुरा और वृंदावन में मंदिरों को पीले फूलों से सजाया जाता है। वसंत के मौसम के आगमन को चिह्नित करने के लिए मूर्तियों को भी पीले कपड़े पहनाए जाते हैं।

बंगाल में, इस दिन लोग हलदी के उबटन से स्नान करते हैं, पीले रंग के कपड़े पहनते हैं और सरस्वती माँ की मूर्ति के समक्ष प्रार्थना करते हैं। 

उपवास करते हैं और देवी को विभिन्न प्रकार के मीठे और नमकीन व्यंजन का भोग लगाते हैं तथा बाद में उस प्रसाद के साथ अपना उपवास तोड़ते हैं।

बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा ने जब संसार का निर्माण किया तो ब्रह्मा जी को सृष्टी में सब कुछ दिखाई दे रहा था 

जैसे की पेड़-पौधों और जीव जन्तु परन्तु फिर भी उन्हें अपनी रचना मे कुछ कमी महसूस हो रही थी इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं।

उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। यह देवी थीं मां सरस्वती। 

मां सरस्वती ने जब वीणा बजाया तो संसार की हर चीज में स्वर आ गया। जल धारा कोलाहल करने लगी।  हवा सरसराहट कर बहने लगी. तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। 

सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादनी और वाग्देवी समेत कई नामों से पूजा जाता है. वो विद्या, बुद्धि और संगीत की देवी हैं. इसी से उनका नाम पड़ा देवी सरस्वती। 

यह बसंत पंचमी का दिन था, तब से देवलोक और मृत्युलोक सभी जगह देवी सरस्वती की पूजा की जाने लगी।

देवी सरस्वती को अक्सर शुद्ध सफेद या पीले रंग की एक सुंदर महिला के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसे अक्सर सफेद कमल पर बैठाया दिखाया जाता है, 

जो प्रकाश, ज्ञान और सच्चाई का प्रतीक है। देवी माँ के आम तौर पर चार हाथ दिखाए जाते हैं, जिनमे से एक हाथ में एक पुस्तक,  एक में माला,  एक में  पानी का कमण्डल और एक हाथ में वीणा प्रदर्शित होती है। 

इनमें से प्रत्येक वस्तु का हिंदू धर्म में प्रतीकात्मक अर्थ है। उनके पैरों के पास अक्सर एक हम्सा या हंस दिखाई देता है। आमतौर पर देवी सरस्वती के पास एक मोर भी दिखाई देता है।

देवी सरस्वती त्रिदेवीयो में से एक देवी है, जो सत्त्वगुण और ज्ञान शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।

ऐसी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन, देवी सती और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने से हर व्यक्ति को शुभ समाचार एवं फल की प्राप्ति होती है।  

इसलिए बसंत पंचमी के दिन, षोडशोपचार पूजा करना विशेष रूप से वैवाहिक जीवन के लिए सुखदायक माना गया है। 

बसंत पंचमी का एक और पौराणिक महत्व

बसंत पंचमी को लेकर एक और भी पौराणिक महत्व सुनने को मिलता है. जिसके अनुसार इस दिन यदि कोई भी व्यक्ति सच्चे दिल से धन और वैभव की देवी मां लक्ष्मी और भगवान श्री विष्णु की पूजा करता है तो, 

उसे हर प्रकार की आर्थिक तंगी से निजात मिल जाती है. हालांकि देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की ये पूजा भी मुख्य रूप से पंचोपचार एवं षोडशोपचार विधि से ही होनी चाहिए। 

बसंत पंचमी के दिन कुछ लोग कामदेव की पूजा भी करते हैं।  पुराने जमाने में राजा हाथी पर बैठकर नगर का भ्रमण करते हुए देवालय पहुंचकर कामदेव की पूजा करते थे। 

बसंत ऋतु में मौसम सुहाना हो जाता है और मान्‍यता है कि कामदेव पूरा माहौल रूमानी कर देते हैं. दरअसल, पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार बसंत कामदेव के मित्र हैं, 

इसलिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है. जब कामदेव कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती है. इनके बाणों का कोई कवच नहीं है। 

बसंत ऋतु को प्रेम की ऋतु माना जाता है. इसमें फूलों के बाणों को खाकर दिल प्रेम से सराबोर हो जाता है. इन कारणों से बसंत पंचमी के दिन कामदेव और उनकी पत्‍नी रति की पूजा की जाती है। 

मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा के साथ पवित्र नदी में गंगा स्नान का भी महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

माना जाता हैं कि अगर कुंडली में विद्या बुद्धि का योग नहीं है या शिक्षा में बाधा आ रही है तो बसंत पंचमी के दिन पूजा करके उसे ठीक किया जा सकता है।


मां सरस्वती की पूजा में ध्यान रखने योग्य बाते

1. बसंत पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए। कोशिश कीजिए कि सूर्योदय से कम से कम दो घंटे पहले              बिस्तर छोड़ दे।

2. बसंत पंचमी के दिन स्नान करके साफ कपड़े पहनने चाहिए।

3. बसंत पंचमी के दिन मंदिर की सफाई करनी चाहिए।

4. मां सरस्वती को पूजा के दौरान पीली वस्तुएं अर्पित करनी चाहिए, जैसे पीले चावल, बेसन का लड्डू इत्यादि।

5. सरस्वती पूजा में पेन, किताब, पेसिंल आदि को शामिल किया जाना चाहिए और इनकी पूजा करनी चाहिए।

6. बसंत पंचमी के दिन बिना स्नान किए भोजन नहीं करना चाहिए।

7. बसंत पंचमी के दिन मांस-मदिरा, लहसुन, प्याज से बनी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।

8. बसंत पंचमी के दिन किसी को अपशब्द बोलने से तथा झगड़ो से बचना चाहिए।

9. बसंत पंचमी के दिन पितृ तर्पण भी किया जाना चाहिए।

10. इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना बेहद जरूरी है।

11. इस दिन रंग-बिरंगे कपड़े नहीं बल्कि पीले वस्त्र पहनने चाहिए।

12. बसंत पंचमी के दिन पेड़-पौधे को नहीं काटना चाहिए।

बसंत पंचमी पूजा विधि

1. मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
2. रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें।
3. वाद्य यंत्र और किताबों को पूजा के स्थान पर रख कर उनकी पूजा करें।
4. मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें।
5. विध्यार्थी इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत रखे। 
6. केवल सात्विक भोजन करें और प्रसन्न रहें।

2021 बसंत पंचमी का मुहूर्त


हिन्दू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी हर साल जनवरी या फरवरी महीने में पड़ती है. इस वर्ष अर्थात 2021 में बसंत पंचमी मंगलवार 16 फरवरी के दिन दुनियाभर में धूमधाम से मनाई जाएगी। 

एस्ट्रोसेज के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस वर्ष बसंत पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त प्रातः 6 बजकर 59 मिनट से लेकर 12 बजकर 35 मिनट तक, यानी करीब 05 घंटे 36 मिनट का रहने वाला है। 


बसंत पंचमी की तिथि : 16 फरवरी 2021
पंचमी तिथि प्रारंभ : 16 फरवरी 2021 को सुबह 03 बजकर 36 मिनट से
पंचमी तिथि समाप्‍त : 17 फरवरी 2021 को दोपहर 05 बजकर 46 मिनट तक
सरस्वती पूजा का शुभ मुहुर्त : 16 फरवरी 2021 को सुबह 06:59 से दोपहर 12:35 मिनट तक

मां सरस्वती के बीज मंत्र

"ॐ ऐं नमः"
"ॐ सरस्वत्यै नमः"
श्रीं हीं सरस्वत्यै स्वाहा।
मां सरस्वती का मंत्र
मां सरस्वती की आराधना करते वक्‍त इस श्‍लोक का उच्‍चारण करना चाहिए:
ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।।
कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।
वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।।
रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।
सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।।वन्दे भक्तया वन्दिता च

माँ सरस्वती वंदना

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

Written By: Pooja Sharma
Jaipur Rajasthan India

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