बेटी और बहू
नीता की शादी की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही थी वैसे-वैसे घर में चहल पहल बढ़ती जा रही थी। घर में मेहमानों का जमघट लगना शुरू हो गया था। नीता नें भी अपने मन में होने वाले ससुराल के प्रति कई सपनें पाल रखे थे। कई बार वह अकेले में ससुराल के बारे में सोचकर मन ही मन घबरा जाती थी लेकिन अपनी यह घबराहट बड़ी सफाई के साथ छुपा भी लेती थी।
इंसान की बनाई हुई यह बड़ी अनोखी परम्परा है जिसमें एक लड़की को शादी के पश्चात अपना घर त्यागना पड़ता है। घर ही क्या, घर से सम्बंधित हर चीज पर नैतिक रूप से उसका अधिकार समाप्त समझ लिया जाता है। अपने माता-पिता, भाई-बहन के साथ-साथ उसे उस हर चीज को भुलाना पड़ता है जो उसे बहुत प्यारी होती है। इन सभी परिस्थितियों के लिए उसे बचपन से ही तैयार किया जाता है और समझाया जाता है कि ये घर उसका नहीं है, उसे शादी के बाद अपने घर जाना है। पता नहीं इस परम्परा का जन्म कब, क्यों और किसलिए हुआ?
नीता बड़ी बहादुर लड़की थी तथा उसने भी दूसरी लड़कियों की तरह इस घड़ी के लिए अपने आप को तैयार कर लिया था परन्तु उसका कोमल मन कई बार लाख कोशिश करने के बाद भी बेचैन हो जाता था। वक्त गुजरते-गुजरते नीता के पराये होने की बेरहम घड़ी भी आ गई और अश्रुपूरित विदाई के साथ नीता ससुराल के लिए विदा हो गई। पूरे रास्ते उसे अपने सभी प्रियजनों की याद सताती रही। रह-रह कर उसे भावी ससुराल के प्रति अपनी माँ से मिली शिक्षाएँ याद आने लगी। माँ ने बचपन से ही नीता को यही सिखाया था कि शादी के पश्चात अपने सास ससुर को ही माता-पिता समझना, देवर और ननद को बहन भाई समान मानना, ससुराल में लड़की की डोली जाती है और वहाँ से फिर वो अर्थी पर ही निकलती है।
ये सब बातें सोचते-सोचते नीता का ससुराल आ गया। घर में नीता का सत्कार हुआ, किसी ने कहा कि घर में लक्ष्मी आ गई है तो कोई बहू की सुन्दरता की तारीफ कर रहा था। कुछ दिनों पश्चात सभी मेहमान भी घर से जा चुके थे और फिर जिन्दगी अपने स्वाभाविक रूप में चलना शुरू हो गई थी। नीता के इस नए घर में उसके सास ससुर के अलावा एक ननद और एक देवर भी थे। ननद और देवर दोनों उससे करीब सात-आठ वर्ष छोटे थे। नीता के पति का स्वभाव काफी सरल था तथा वह हर प्रकार से नीता का खयाल रखनें की कोशिश करता था। शादी को दो महीनें बीत गए थे। दिसम्बर के महीनें में नीता का जन्म दिन आने वाला था तथा खास बात यह थी कि उसके कुछ ही दिनों पश्चात उसकी ननद का जन्मदिन भी था।
नीता का जन्मदिन अभी तक बहुत धूमधाम से न सही परन्तु बहुत प्यार और उत्साह के साथ मनाया गया था। नीता को परिवार के सभी लोग जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने लग जाते थे तथा परिवार के सभी लोग एक जगह इकठ्ठा होकर बड़ी खुशी-खुशी जन्मदिन मनाया करते थे। जन्मदिन वाले दिन नीता एक राजकुमारी की तरह से रहा करती थी।
दिन बीतते-बीतते आखिर जन्मदिन वाली वो घड़ी भी आ गई। नीता अलसुबह ही उठ गई थी और सबकी बधाइयों के लिए अपने आप को तैयार करनें लगी। उसे उम्मीद थी कि उसके पुराने घर की तरह न सही लेकिन सब उसे बड़े प्यार से जन्मदिन की शुभकामनाएँ तो जरूर देंगे। इसी बात में मुग्ध होकर उसने रसोई में जाकर चाय बनाई और चाय लेकर अपने सास ससुर के पास पँहुची। उसको लग रहा था कि कमरे में जाते ही उसे अप्रत्याशित बधाई का सामना करना पड़ेगा।
कमरे में जाकर उसने चाय की ट्रे को मेज पर रख दिया। हर क्षण उसे यही लग रहा था कि उसे अब बधाई मिलेगी परन्तु उसे निराशा ही हाथ लगी। थोड़ी देर पश्चात वो वापस अपने कमरे में लौट आई। सुबह के नाश्ते के वक्त सभी लोग साथ-साथ बैठे थे परन्तु उस वक्त भी किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर पश्चात फोन की घंटी बजी और नीता ने ख्यालों में खोते-खोते कुछ देर बाद फोन उठाया तो उधर से उसकी माताजी की आवाज आई “जन्मदिन मुबारक हो नीता बेटी। ससुराल में जन्मदिन की बधाईयाँ लेने में इतनी मशगूल हो गई कि माँ का फोन भी इतनी देर बाद उठाया। ”
पिताजी ने भी बात करके नीता को जन्मदिन की शुभकामनाएँ प्रेषित करके आशीर्वाद दिया। नीता उम्मीद लगाकर सोच रही थी कि ये सभी लोग शाम को मुझे कोई सरप्राइज देने वाले हैं शायद इसीलिए कोई भी मेरे जन्मदिन के बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। अब नीता शाम के सरप्राइज के लिए अपने आप को तैयार करने लगी। शाम के आठ बजने को आ गए परन्तु घर में सरप्राइज वाला कोई माहौल नजर नहीं आया।
नीता और उसकी ननद सीमा, नीता के कमरे में बैठकर आपस में बातें कर रही थी कि अचानक से नीता के मोबाइल की घंटी बजी। मोबाइल सीमा ने उठाया तो उधर से नीता की सहेली रमा की आवाज आई “हैप्पी बर्थडे टू यू नीता।” नीता की ननद ने तब बताया कि वो नीता नहीं बल्कि उसकी ननद सीमा है और मोबाइल नीता की तरफ बढ़ाते हुए बोली “आपने बताया ही नहीं कि आपका आज जन्मदिन है, चलो हैप्पी बर्थडे।“ इतना कहकर वह बाहर की तरफ चली गई।
नीता ने अपनी सहेली रमा से काफी बातें की और जैसे ही उसने मोबाइल रखा, नीता की सास ने कमरे में प्रवेश किया और बोली “अरे नीता तुमने बताया ही नहीं कि आज तुम्हारा जन्मदिन है।“ फिर पर्स से सौ रुपये निकल कर नीता की हथेली पर रखे और नीता को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देकर चली गई। नीता ने सोचा कि शायद ये लोग बहुत सरल स्वभाव के लोग हैं जो इन चीजों को ऐसे ही मनाते हैं। नीता ने इस तरह मिले आशीर्वाद को सर माथे पर ले लिया।
कुछ दिन बाद घर में चर्चाएँ शुरू हो गई कि सीमा का जन्मदिन आने वाला है तो क्या-क्या करना है, कैसे करना है, खाना क्या बनाना है, आदि। सीमा के जन्मदिन के एक दिन पूर्व सभी को उसका जन्मदिन अच्छी तरह से याद था। सुबह जैसे ही सीमा की आँखे खुली सभी लोगों ने कमरे में खड़े होकर गाया “हैप्पी बर्थडे डियर सीमा।“ माताजी ने सीमा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे पाँच सौ रुपये दिए और पिताजी ने उसकी ख्वाहिश पूँछी।
शाम को छोटी सी दावत का आयोजन हुआ जिसमें एक बड़ा सा केक काटा गया। घरवालों और सभी मेहमानों ने सीमा को जन्मदिन की पुनः बधाई दी। नीता एक कोने में खड़ी-खड़ी सोच रही थी कि जिन लोगों को मेरे जन्मदिन का ख्याल भी नहीं आया, उन्ही लोगों को सीमा का जन्मदिन कितनें दिन पहले से याद है। फिर उसने अपने मन को तसल्ली देते हुए अपने आप से कहा “शायद यह बहू और बेटी का फर्क होगा।“
बेटी और बहू
daughter and daughter in law
नीता बड़ी बहादुर लड़की थी तथा उसने भी दूसरी लड़कियों की तरह इस घड़ी के लिए अपने आप को तैयार कर लिया था परन्तु उसका कोमल मन कई बार लाख कोशिश करने के बाद भी बेचैन हो जाता था। वक्त गुजरते-गुजरते नीता के पराये होने की बेरहम घड़ी भी आ गई और अश्रुपूरित विदाई के साथ नीता ससुराल के लिए विदा हो गई। पूरे रास्ते उसे अपने सभी प्रियजनों की याद सताती रही। रह-रह कर उसे भावी ससुराल के प्रति अपनी माँ से मिली शिक्षाएँ याद आने लगी। माँ ने बचपन से ही नीता को यही सिखाया था कि शादी के पश्चात अपने सास ससुर को ही माता-पिता समझना, देवर और ननद को बहन भाई समान मानना, ससुराल में लड़की की डोली जाती है और वहाँ से फिर वो अर्थी पर ही निकलती है।
ये सब बातें सोचते-सोचते नीता का ससुराल आ गया। घर में नीता का सत्कार हुआ, किसी ने कहा कि घर में लक्ष्मी आ गई है तो कोई बहू की सुन्दरता की तारीफ कर रहा था। कुछ दिनों पश्चात सभी मेहमान भी घर से जा चुके थे और फिर जिन्दगी अपने स्वाभाविक रूप में चलना शुरू हो गई थी। नीता के इस नए घर में उसके सास ससुर के अलावा एक ननद और एक देवर भी थे। ननद और देवर दोनों उससे करीब सात-आठ वर्ष छोटे थे। नीता के पति का स्वभाव काफी सरल था तथा वह हर प्रकार से नीता का खयाल रखनें की कोशिश करता था। शादी को दो महीनें बीत गए थे। दिसम्बर के महीनें में नीता का जन्म दिन आने वाला था तथा खास बात यह थी कि उसके कुछ ही दिनों पश्चात उसकी ननद का जन्मदिन भी था।
नीता का जन्मदिन अभी तक बहुत धूमधाम से न सही परन्तु बहुत प्यार और उत्साह के साथ मनाया गया था। नीता को परिवार के सभी लोग जन्मदिन की शुभकामनाएँ देने लग जाते थे तथा परिवार के सभी लोग एक जगह इकठ्ठा होकर बड़ी खुशी-खुशी जन्मदिन मनाया करते थे। जन्मदिन वाले दिन नीता एक राजकुमारी की तरह से रहा करती थी।
दिन बीतते-बीतते आखिर जन्मदिन वाली वो घड़ी भी आ गई। नीता अलसुबह ही उठ गई थी और सबकी बधाइयों के लिए अपने आप को तैयार करनें लगी। उसे उम्मीद थी कि उसके पुराने घर की तरह न सही लेकिन सब उसे बड़े प्यार से जन्मदिन की शुभकामनाएँ तो जरूर देंगे। इसी बात में मुग्ध होकर उसने रसोई में जाकर चाय बनाई और चाय लेकर अपने सास ससुर के पास पँहुची। उसको लग रहा था कि कमरे में जाते ही उसे अप्रत्याशित बधाई का सामना करना पड़ेगा।
कमरे में जाकर उसने चाय की ट्रे को मेज पर रख दिया। हर क्षण उसे यही लग रहा था कि उसे अब बधाई मिलेगी परन्तु उसे निराशा ही हाथ लगी। थोड़ी देर पश्चात वो वापस अपने कमरे में लौट आई। सुबह के नाश्ते के वक्त सभी लोग साथ-साथ बैठे थे परन्तु उस वक्त भी किसी ने कुछ नहीं कहा। कुछ देर पश्चात फोन की घंटी बजी और नीता ने ख्यालों में खोते-खोते कुछ देर बाद फोन उठाया तो उधर से उसकी माताजी की आवाज आई “जन्मदिन मुबारक हो नीता बेटी। ससुराल में जन्मदिन की बधाईयाँ लेने में इतनी मशगूल हो गई कि माँ का फोन भी इतनी देर बाद उठाया। ”
पिताजी ने भी बात करके नीता को जन्मदिन की शुभकामनाएँ प्रेषित करके आशीर्वाद दिया। नीता उम्मीद लगाकर सोच रही थी कि ये सभी लोग शाम को मुझे कोई सरप्राइज देने वाले हैं शायद इसीलिए कोई भी मेरे जन्मदिन के बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। अब नीता शाम के सरप्राइज के लिए अपने आप को तैयार करने लगी। शाम के आठ बजने को आ गए परन्तु घर में सरप्राइज वाला कोई माहौल नजर नहीं आया।
नीता और उसकी ननद सीमा, नीता के कमरे में बैठकर आपस में बातें कर रही थी कि अचानक से नीता के मोबाइल की घंटी बजी। मोबाइल सीमा ने उठाया तो उधर से नीता की सहेली रमा की आवाज आई “हैप्पी बर्थडे टू यू नीता।” नीता की ननद ने तब बताया कि वो नीता नहीं बल्कि उसकी ननद सीमा है और मोबाइल नीता की तरफ बढ़ाते हुए बोली “आपने बताया ही नहीं कि आपका आज जन्मदिन है, चलो हैप्पी बर्थडे।“ इतना कहकर वह बाहर की तरफ चली गई।
नीता ने अपनी सहेली रमा से काफी बातें की और जैसे ही उसने मोबाइल रखा, नीता की सास ने कमरे में प्रवेश किया और बोली “अरे नीता तुमने बताया ही नहीं कि आज तुम्हारा जन्मदिन है।“ फिर पर्स से सौ रुपये निकल कर नीता की हथेली पर रखे और नीता को जन्मदिन की शुभकामनाएँ देकर चली गई। नीता ने सोचा कि शायद ये लोग बहुत सरल स्वभाव के लोग हैं जो इन चीजों को ऐसे ही मनाते हैं। नीता ने इस तरह मिले आशीर्वाद को सर माथे पर ले लिया।
कुछ दिन बाद घर में चर्चाएँ शुरू हो गई कि सीमा का जन्मदिन आने वाला है तो क्या-क्या करना है, कैसे करना है, खाना क्या बनाना है, आदि। सीमा के जन्मदिन के एक दिन पूर्व सभी को उसका जन्मदिन अच्छी तरह से याद था। सुबह जैसे ही सीमा की आँखे खुली सभी लोगों ने कमरे में खड़े होकर गाया “हैप्पी बर्थडे डियर सीमा।“ माताजी ने सीमा के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उसे पाँच सौ रुपये दिए और पिताजी ने उसकी ख्वाहिश पूँछी।
शाम को छोटी सी दावत का आयोजन हुआ जिसमें एक बड़ा सा केक काटा गया। घरवालों और सभी मेहमानों ने सीमा को जन्मदिन की पुनः बधाई दी। नीता एक कोने में खड़ी-खड़ी सोच रही थी कि जिन लोगों को मेरे जन्मदिन का ख्याल भी नहीं आया, उन्ही लोगों को सीमा का जन्मदिन कितनें दिन पहले से याद है। फिर उसने अपने मन को तसल्ली देते हुए अपने आप से कहा “शायद यह बहू और बेटी का फर्क होगा।“
बेटी और बहू
daughter and daughter in law